It is an aspiration to be reborn and remoulded completely by the Divine Mother, directly with Her shaping touch, then indirectly through nature as it happens now.
गायिका : ज्योतिका लेखक : आलोक पांडे
माँ तुम्हारे गर्भ में फिर से समाना चाहता हूँ
बस तेरी पहचान लेकर जन्म लेना चाहता हूँ l
पांच धातु से बनी मिट्टी से खेला हूँ बहुत
ज्योतिकण की देह में वापस मैं आना चाहता हूँ
दोष हैं मुझमे कई निर्दोष बनना चाहता हूँ
पूरी तरह तुझ में पिघल मैं शुद्ध होना चाहता हूँ l
सत्य का प्रतिबिंब हो मन ज्ञान से भरपूर हो
प्राण हो ऊर्जा सघन माँ शक्ति से वह पुर्ण हो
हो हृदय में प्रेम तेरा दया करुणा से भरा
देह में तेरी ही शक्ति स्वांस तुझमे हो रमा
कोशिका में नाम तेरा ही मेरा जीवन बने
धड़कनौ में गीत व संगीत तेरा ही बजे
यज्ञ वेदी हो मेरा जीवन तुम्हारे कर्म का
कोशिकाओं मेँ तेरा आलोक ही जलता रहे l
ऐसा ही नव जन्म तुमसे फिर मैं पाना चाहता हूँ
जन्म से ही माँ तेरा दर्शन मैं पाना चाहता हूँ l
[Jyotika Paust sings a bhajan written by Alok Pandey]